मनुष्य कब समझेगा (कहानी) कर्मजीत सिंह गठवाला
हज़ारों वर्ष बीत गए हैं जिस समय की बात मैं आपको सुना रहा हूँ। बुलबुल को बहुत जोर की भूख लगी हुई थी।
वह खाने की तलाश में अमरूद के पौधे पर आ कर बैठ गई और लगी कच्चे अमरूदों पर चोंच मारने। जितने अमरूद उसने खाए उस से कहीं अधिक बर्बाद किए और नीचे फेंक दिए। अमरूद के पौधे से यह बर्बादी सहन न हुई।
उसने बुलबुल को कहा, “अरी बुलबुल ! तुम्हारे और तोते में कोई फ़र्क है? वह भी खाता कम है और बर्बाद अधिक करता है और तू भी वही कुछ करती है।”
बुलबुल चिढ़ कर बोली, “तू कितना मूर्ख है, मुझे तोते के साथ मिला दिया। वह कहाँ मैं कहाँ !”
अमरूद के पौधे ने पूछा, “वह कैसे?”
“मैंने फल तो पेट भरने के लिए खाने ही हैं, परन्तु साथ आपको मीठे -मीठे गीत भी तो सुनाती हूँ,” बुलबुल बोली।
अमरूद के पौधे ने कुछ देर सोचा और कहने लगा, “तेरी बात तो ठीक है, परन्तु अगर तू केवल पक्के फल ही खाए तो यह तुम्हारे लिए भी आसान होगा और मुझे भी दर्द कम से कम होगा, यों भी पक्के फलों ने तो गिरना ही है।”
बुलबुल को यह बात जँच गई और वह खुशी-खुशी मान गई। उस के बाद वह पके हुए फल ही खाने लगी और जब भूख मिट जाती फिर वह एक ठूंगा भी फल पर न मारती।
अमरूद के पौधे ने एक दिन प्रातःकाल हवा के साथ झूमते हुए, सारी बात पास खड़े अनार के पौधे को बताई।
दोनों बातें कर ही रहे थे कि इतने में एक लड़का वहाँ आया और डंडे के साथ अमरूद गिराने लगा। उसने कच्चे, अर्ध-पक्के और पक्के कितने ही अमरूद गिरा दिए। फिर उनमें से उसने जो अच्छे लगे उठा लिए और बाकी वहीं पड़े रहने दिए और अपना काम करके वहाँ से चला गया।
उस लड़के के जाने के बाद अनार का पौधा बड़े दुखी मन से बोला, “अमरूद यार ! बात तो तेरी ठीक है, परन्तु यह मनुष्य पता नहीं कब यह बात समझेगा?” अनार की यह बात सुनकर पास खड़े दूसरे पौधे और उन पर बैठे पक्षी सोच में डूब गए।