Wednesday, November 29, 2023
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समझे तो मरा, न समझे तो मरा : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा

Samjhe To Mara, Nasamjhe To Mara : Lok-Katha (Oriya/Odisha)

धन कमाना सहज नहीं। जो कमाता है, वह ही जाने। कमाने में कितना पसीना बहता। वह आँख बंद करके लुटाता है। प्रधान बूढ़े ने जब आँख मींचीं, साफ कह गया कि मेरा गड़ा धन नहीं, जो है संदूक में है, तीन पीढ़ी तक चिंता नहीं, पर मेरी कुछ बात याद रखना।

भागवत बाँच रहे। बेटा अंतिम चुलू देने जा रहा, देखो बापू क्या कर रहे।

प्रधान बूढ़े ने धीरे से कहा—

“द्वार पर रखना दाँती कवाट
अपने पिछवाड़े लगाना हाट
देकर माँगने न जाना,
गुंडे का सिर खाना
बिना घाट पर नहाने जाना।”

आगे कुछ बोलता, उसांस चलने लगे, एक हिचकी में प्राण उड़ गए।

बेटे ने ठीक से बाप का क्रिया-कर्म किया। अब उपदेश एक-एक कर पालन करने लगा। बूढ़े के काँसे के लगाए किवाड़ बंद करो तो कोस भर सुनाई दे।

अब दूसरा उपदेश माना। इसमें बहुत रुपए खर्च हो गए। नई हाट की झोंपड़ी बनाई। नई हाट में बेचने की खबर दूर-दूर भेजी। हाट नया, ज्यादा लोग तो नहीं आए। बहुत चीजें बिना बिकी रहीं। उन्हें बेटे ने पैसे से खुद खरीद लिया। बंधु-कुटुंबी को भोज दिया। इस हाट में काफी पैसा बरबाद हो गया।

कहते हैं—रुपया जाता सीधा, आता है घुमाव में। बिना माँगे कोई क्यों देगा? उसने बहुत पैसे उधार दिए।

बाप ने कहा, “गुंडा का मुंड पाना। बेटे ने रोहू, भाकुर के मुंड खाए। इसमें भी काफी खर्च हो गया।”

बेटा आखिरी बात बिल्कुल समझ न सका। घाट छोड़ कोई अनघाट क्यों नहाएगा?

घर बेहाल। बेटा सोच रहा था कि बापू ने यह क्यों कहा? इससे क्या उपकार मिले।

उस दिन गुरुगुसाईं आ पहुँचे। उन्होंने पूछा, “कुछ ही दिन में क्या हाल कर दिया। धन-दौलत गई कहाँ?” बेटे ने सब कह सुनाया।

गुरुजी ने समझाया—द्वार पर दाँती कवाट, यानी अच्छे कुत्ते पालना। वह उठा-जूठ खाए, खाद्य ज्यादा नहीं, पर उपकार बहुत करे। चोर डरे।”

सोना-चाँदी बंधक रख उधार देना, माँगने नहीं जाना पड़ेगा। पिछवाड़े हाट बिठाना—सब साग-सब्जी की खेती करना, ताकि हाट में तुझे जाना न पड़े। इसमें पैसा खर्च न होगा।

गुंडे का मुंडे खाना—छोटी-छोटी मछली खाना। कम खर्च होगा।

घाट से हटकर नहाने का मतलब है—घाट पर नहाते हो, बैठना पड़ेगा, समय नष्ट होगा।

कहावत है—

जहाँ बहुत जन मिले, अवश्य झगड़ा हो।

भीड़ हो तो जरा सी बात पर झमेला हो। घाट पर भूली चीज न मिले।

बेटा अब बाप के उपदेश का मर्म समझा। हाथी दाँत के किवाड़ बेच दिए। दो कुत्ते पाले। बाड़ी में साग-सब्जी लगाई। कह-सुन उधार अदा किया।

कुछ दिन में धनी का धनी हो गया।

(साभार : डॉ. शंकरलाल पुरोहित)

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