Wednesday, December 6, 2023
Homeलोक कथाएँओड़िशा/उड़ीसा की लोक कथाएँबड़े का आश्रय लेना, छोटों के पास फटकना नहीं : ओड़िआ/ओड़िशा की...

बड़े का आश्रय लेना, छोटों के पास फटकना नहीं : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा

Bade Ka Ashraya Lena, Chhoton Ke Paas Phatkana Nahin : Lok-Katha (Oriya/Odisha)

बाप इतना बड़ा कि सारे इलाके में नाम! राजद्वार में भी सम्मान। मुँह खोले श्लोक, हँसे श्लोक, छींके श्लोक, इधर बेटा निरा मूर्ख, बाप का नाम भी बता नहीं सकता। पंडित ने बहुत कोशिश की, सब बेकार। वह राजद्वार से जाकर पैसे लाता। बेटा सब खा-पी लेता। दंता तास-चौपड़ खेलता। कुसंगियों का साथी बना। कुजगह बैठता।

पंडित ने मरते समय छड़ी माथे पर रख कहा, “तुम तो कुछ बने नहीं। जितना समझाया, वैसे ही रहा। सदा बड़े का आश्रय लेना, छोटे के पास न फटकना।”

बेटे ने सबकुछ बेच, उधार कर श्राद्ध कर दिया। अब दुनियादारी की बात दिमाग में आई। कैसे हो, क्या करे? सिर पर हाथ दे बैठ गया। सोचने लगा, बापू की बात याद आई। बड़ों का आसरा, छोटे के पास न फटकना। उनके पास कौन नहीं जाता। मारनेवाले को मारे, राजा बैठे सिंहासन पर। लक्ष्मी बैकुंठ छोड़ राजा के भंडार में। सरस्वती है दरबार में। राजा के आश्रय में सारा दुःख मिटेगा।

मूर्ख राजसभा में आया, मगर सहमा खड़ा रहा। किसी ने न पूछा। न पास बिठाया। सीधे मुँह बात न की। कुछ कहना चाह रहा था, तभी एक पंडित वहाँ पहुँचा। राजा ने आकर पंडित को नमस्कार किया। मूर्ख को लगा, राजा से बड़ा है। धन से विद्या बड़ी है। वह पंडित के पीछे हो गया।

पंडित ने पूछा, “अरे, मेरे पीछे क्यों आ रहे हो?”

मूर्ख ने कहा, “राजा ने जब आपको नमस्कार किया, आप बड़े हैं। बापू ने कहा था, बड़े का आसरा लेना। मैं आपके आश्रय में रहूँगा।”

पंडित ने सोचा, ‘वाह! मेरी बात तो पानी की लकीर है। कमाकर लाओ तो चूल्हा जले। मैं इसे कैसे चलाऊँगा?’ समझाए क्या बनेगा? तभी अक्ल आ गई।

मूर्ख पीछे-पीछे चला। पंडित ने देखा, खेत की बाड़ के सहारे-सहारे सियार-सियारनी आ रहे हैं। कुछ दूर चलने के बाद पंडित ने दोनों को नमस्कार किया। मूर्ख देखकर सोचने लगा, पंडित तो सियार को नमस्कार कर रहा है। तो पंडित कैसे बड़ा होगा? ये सियार-सियारनी बड़े हैं।

मूर्ख उनके पीछे चला। सियार ने सोचा, यह हमें मारने आ रहा है। भागना होगा। मूर्ख ने पीछा किया। रास्ते से गली, गली से खेत-बाग, उजाड़ में भागते-भागते तीन दिन, तीन रात चले, भागने के चक्कर में सियार-सियारनी पानी की बूँद भी नहीं पी सके। थक गए। प्राण गले में आ गए। स्वर्ग में हलचल। दोनों की उमर पूरी हुई नहीं। अकाल में मरने पर स्वर्ग को दोष लगेगा। यह मूर्ख है, जो जिद पकड़ी, नहीं मानेगा, क्या करें? लक्ष्मीजी बोलीं, “बउला गाय की बछिया है। वह सोना गोबर करती है, वह इसे दे दो, धन मिलेगा तो जिद छोड़ देगा।”

सरस्वती सियारनी के गले में बैठी। आदमी के स्वर में बोली, “अरे हमारे पीछे क्यों भागते हो? यह गाय हमारी इष्ट गुरु है, इसे ले जाओ। यह तुम्हारी मनोकामना पूरी करेगी।” दोनों ने एक झुरमुटे में घुसकर चैन की साँस ली।

ब्राह्मण गाय को बाँध घर ले आया। घोर अँधेरा। इस समय कहाँ जाए? तेली के बरामदे में गाय बाँध दी। बड़ी सुबह तेली उठा। बटोही बरामदे में सोया है। पास में गाय बँधी है। उसके पीछे गोबर नहीं, सोना के तीन लेंदे पड़े। इतना सोना कभी नहीं देखा। आँखें देख चौड़ी हो गईं। गमछे में लपेट घर ले जाने लगा, ब्राह्मण की नींट टूट गई।

“ऐं, मेरा धन लेजा रहा है?”

तेली—“तेरा उपकार किया। उलटे मुझे कहता है, तेरा धन मैं ले रहा हूँ?”

“मेरे खूँटे ने सोना दिया।”

इस तरह ‘मेरी गाय’ मेरी खूँटी करते-करते धक्का दे तेली ने घर में घुस किवाड़ बंद कर लिया। ब्राह्मण ने राजा से जाकर फरियाद की। उससे पहले तेली फरियाद ले पहुँच गया। उसने सोने की दो मुहर राजा को भेंट दे दी।

राजा ने विचारकर कहा, “गाय बछिया जनम दे, सोना नहीं जनमती।”

ब्राह्मण—“मैं साक्षी दूँगा।”

राजा—“साक्षी कौन है?”

ब्राह्मण—“सियार-सियारनी।”

राजा—“बुला उन्हें।”

ब्राह्मण ने जाकर सियार-सियारनी के निहोरे किए। कुछ न सुना। कहा, “तुम मनुष्यों का विश्वास नहीं, इसमें खतरा है। हम तुम्हारे साथ नहीं जाएँगे। जरूरत हो तो तुम हमारे पास आओ।”

तब राजा वहाँ गए। सियार एक ओर बैठा।

राजा—“तू ब्राह्मण का साक्षी है?”

“जी हाँ।”

“गाय सोने का गोबर करती है, ब्राह्मण का कहना सच है?”

“ये लक्ष्मीजी की गाय है। स्वर्ग की है, सोना जन्म करती है। सच-झूठ महाराज पहचान लें।”

तेली-ब्राह्मण घबरा गए।

“आँख पर पट्टी बाँध दें, जिसके सिर पूँछ रख दूँ, सोना उसका।”

उन्होंने सात परत पट्टी सियार की आँख पर बाँधी। तेली-ब्राह्मण पाँच बार इधर-उधर हो बैठे। सियार ने ब्राह्मण के सिर पूँछ रख कहा, “सच हो, सब सच।”

ब्राह्मण सोना लेकर राजा से पाट-सिरोपाव ले घर लौटा। पीछे-पीछे लौटी बउला गाय की बछिया। तेली मामा घर में आकर अपने धंधे में लगा।

(साभार : डॉ. शंकरलाल पुरोहित)

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments